ग्राम भागोडीह में भोजली त्योहार: एक सांस्कृतिक धरोहर का जीवंत उत्सव

ग्राम भागोडीह में हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी भोजली त्योहार को धूमधाम से मनाया गया। इस धार्मिक और सांस्कृतिक पर्व ने गांव की सभी महिलाओं, माता-बहनों, बुजुर्गों, युवाओं और बच्चों को एक मंच पर लाकर एकता और समर्पण का अद्भुत प्रदर्शन किया। यह पर्व ना केवल गांव की परंपराओं और रीति-रिवाजों का प्रतीक है, बल्कि समाज की सामूहिक शक्ति और सांस्कृतिक धरोहर को भी प्रकट करता है।
भोजली त्योहार का परिचय और महत्व

न्यूज़ रिपोर्टर नीलकंठ सूर्यवंशी / भागोडीह
भोजली त्योहार, विशेष रूप से छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और झारखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह त्योहार मुख्य रूप से श्रावण मास के अंतिम, रक्षा बंधन के बाद मनाया जाता है। इस पर्व में महिलाएं और बालिकाएं अपनी फसल की अच्छी पैदावार और परिवार की समृद्धि की कामना करती हैं।
ग्राम भागोडीह में इस त्योहार का विशेष महत्व है। यहां की महिलाएं अपनी सांस्कृतिक धरोहर को संजोए हुए इस पर्व को प्रतिवर्ष अत्यंत श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाती हैं। भोजली की पूजा से गांव में समृद्धि और खुशहाली की कामना की जाती है। साथ ही, यह पर्व सामाजिक और धार्मिक एकता को भी मजबूत करता है।
भोजली की तैयारी
भोजली त्योहार की तैयारी में गांव की महिलाएं विशेष रुचि लेती हैं। श्रावण मास की शुरुआत में महिलाएं भोजली के बीज जैसे जौ, या गेहूं, को पात्रों में बोती हैं। यह प्रक्रिया गांव की धार्मिकता और आस्था का प्रतिबिंब होती है। पौधों की वृद्धि के साथ महिलाएं उन्हें पूजा अर्चना और गीतों के माध्यम से सम्मानित करती हैं। ग्राम भागोडीह में इस प्रक्रिया का विशेष महत्व है, क्योंकि यह गांव की महिलाओं के सामूहिक प्रयास और उनकी सांस्कृतिक समझ का प्रतीक है।
पूजा और धार्मिक अनुष्ठान
भोजली के दिन, ग्राम भागोडीह की महिलाएं, अपनी सजी-संवरी भोजली को पूजा स्थल पर लेकर एकत्रित होती हैं। इस वर्ष भी गांव की सभी महिलाएं, माता-बहनें, अपने-अपने भोजली के साथ एकत्रित हुईं। पूजा के दौरान, महिलाएं देवी-देवताओं की पूजा करती हैं और भोजली के पौधों को उनके चरणों में अर्पित करती हैं। यह पूजा विधि गांव के धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व को दर्शाती है।
पूजा के पश्चात, प्रसाद वितरण की परंपरा होती है। इस प्रसाद को ग्रहण करना शुभ माना जाता है, क्योंकि यह गांव की समृद्धि और खुशहाली का प्रतीक होता है। प्रसाद ग्रहण करने के बाद, सभी गांववासियों के बीच हर्षोल्लास का माहौल होता है, जो समाज की एकता और भाईचारे को प्रकट करता है।
जल विसर्जन और सांस्कृतिक कार्यक्रम

पूजा और प्रसाद वितरण के बाद, ग्राम भागोडीह के सभी बुजुर्ग, युवा, और बच्चे भोजली को जल विसर्जन के लिए पास की नदी या तालाब में लेकर जाते हैं। इस वर्ष भी, सभी ने एक साथ मिलकर उत्साहपूर्वक भोजली का जल विसर्जन किया। जल में भोजली का विसर्जन करते समय महिलाएं गीत गाती हैं और भगवान से फसल की समृद्धि और गांव की खुशहाली की प्रार्थना करती हैं। यह अनुष्ठान प्रकृति और कृषि के प्रति सम्मान और समर्पण का प्रतीक है।
इसके बाद, सभी ने एक-दूसरे को भोजली दी और शुभकामनाएं देते हुए त्योहार का समापन किया। भोजली का आदान-प्रदान, गांववासियों के बीच प्रेम, एकता और भाईचारे का प्रतीक है। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और गांव के सामाजिक ताने-बाने को मजबूती प्रदान करती है।
भोजली का सामुदायिक महत्व

भोजली त्योहार ग्राम भागोडीह में सामुदायिक भावना का जीवंत उदाहरण है। इस दिन, गांव के सभी लोग एकजुट होकर इस पर्व को मनाते हैं। यह पर्व ना केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि इससे सामाजिक संबंध भी मजबूत होते हैं। गांव की महिलाएं, बुजुर्ग, युवा और बच्चे मिलकर इस त्योहार को मनाते हैं, जिससे गांव में एकता और सामूहिकता की भावना प्रकट होती है। भोजली का पर्व गांव के सामाजिक ताने-बाने को और भी मजबूत करता है और यह सुनिश्चित करता है कि सांस्कृतिक परंपराएं आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचे।
ग्राम भागोडीह में मनाया जाने वाला भोजली त्योहार एक अद्वितीय सांस्कृतिक पर्व है, जो गांव की धार्मिकता, आस्था, और सामुदायिक एकता को प्रकट करता है। यह त्योहार गांव की महिलाएं अपने समर्पण और श्रद्धा के साथ मनाती हैं, जो सामाजिक और सांस्कृतिक धरोहर को सजीव बनाए रखता है। इस वर्ष भी भोजली पर्व को ग्राम भागोडीह में विशेष उत्साह और उल्लास के साथ मनाया गया, जिसमें गांव की सभी महिलाएं, बुजुर्ग, युवा और बच्चे शामिल हुए।
भोजली पर्व गांववासियों के बीच प्रेम, एकता, और भाईचारे को बढ़ावा देने वाला त्योहार है। ग्राम भागोडीह में यह पर्व हर साल नई उमंग और उत्साह के साथ मनाया जाता है, जो गांव की समृद्धि और खुशहाली के प्रतीक के रूप में सदियों तक जीवित रहेगा।